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रहस्यमाई चश्मा भाग - 46

धीरे धीरे सभी लोग यशोवर्धन एव यशोधरा को सांत्वना देते हुए चले गए हवेली के सेवको को भी यशोवर्धन ने आदेश दिया वे अपने अपने घरों को चले जाय अब हवेली में यशोवर्धन एव यशोधरा के अतिरिक्त मंगलम चौधरी एव संकल्प संवर्धन परिवार के लोग ही थे जो नियमित दिनचर्या में रहते थे सबके रात्रि के दस बज चुके थे संत ने कहा शुभा के कमरे को पुनः उसी तरह बाहर से बंद कर दिया जाय यशोवर्धन ने पुनः कुछ सेवको को बुलाया और शुभा के कमरे के टूटे हुए दरवाजे को किसी तरह बंद करवाया दरवाजा बंद करने के बाद हवेली के सेवको के जाने के बाद संत ने कहा बड़ी भूख लगी है,,,,

कुछ प्रसाद भोजन के रूप में बनाओ तुम स्वयं बनाओगी मरता क्या न करता बेटी की जान जोखिम में देख शुभा ने भोजन बनाया रात्रि के बारह बज चुके थे संत ने कहा मध्य रात्रि को भोजन करना निषेद है क्योंकि मध्य रात्रि का भोजन उत्कोच होता है लेकिन मैं ग्रहण करूंगा भगवान भोले नाथ का प्रसाद समझ कर और आप पूरे परिवार के साथ मंगलम चौधरी को भी बुलाये यशोवर्धन और सुलोचना ने जब संत के द्वारा मंगलम का नाम सुना तो आश्चर्य में पड़ गए क्योकि अब तक मंगलम संत के सामने नही आया था यशोवर्धन ने मंगलम चौधरीं को बुलाया संत ने अपने साथ पूरे परिवार यशोवर्धन यशोधरा संकल्प संवर्धन एव यशोधरा के साथ मंगलम चौधरी भोजन प्रसाद के रूप में ग्रहण किया,,,,,

भोजन के उपरांत संत बोले मंगलम तुम जाओगे शुभा के कमरे में भोजन प्रसाद के रूप में लेकर मंगलम चौधरी तो स्वंय आत्म ग्लानि प्राश्चित से अपराध बोध से ग्रसित था वह कुछ भी करने के लिए तैयार था संत बोले और हॉ मंगलम तुम जिस शैय्या पर शुभा सोई है उसी शैय्या पर बैठ कर शुभा को भोजन अपने हाथों से कराओगे एव वही शयन भी करोगे,,,,,

कुछ भी हो मृत्यु का भय सभी प्राणियों को भयाक्रांत करता है प्रेम और शुभा के प्रेम आकर्षण में मंगलम चौधरी ने शुभा के पास जाना तो सहर्ष स्वीकार कर लिया लेकिन जब वह शुभा के कमरे के बढेर से पूंछ के सहारे लटका विषधर पूरे कमरे में चारो तरफ घूमता हुआ फुंकार बड़े जोरो से मारने लगा मंगलम को तो लगा कि वह स्वयं ही मृत्यु के मुहँ में आ गया खास बात यह थी कि ज्यो ज्यो लगभग जमीन पर लेटते हुये एक हाथ मे भोजन लिए मंगलम आगे बढ़ता विषधर कि फुंकार और तेज और भयंकर होती जाती लेकिन विशधर सिर्फ शुभा के पलंग और उस तक ही पहुंच सकता था इतनी ही लंबाई थी यदि उसे शुभा के कमरे में लगभग रेंगते मंगलम तक पहुंचना था तो उसे कमरे की बढेर से जमीन पर गिरना आवश्यक था,,,,,

लेकिन दिन में बहुत प्रायास के बाद भी बढेर को विषधर ने नही छोड़ा था और मुंह उसका शुभा के शरीर कि तरफ़ ही था जब भी शुभा करवट बदलने की कोशिश करती वह भयंकर रूप बना लेता ।ज्यो ही मंगलम चौधरी शुभा के कमरे में भोजन प्रसाद लेकर दाखिल हुआ संत बोले रात्रि बहुत हो चुकी है मुझे कुछ देर विश्राम करना है आप लोग भी विश्राम करें निश्चिन्त होकर और बोले शुभा बिटिया कोई साधारण कन्या नही है उसकी रक्षा स्वस् भोले नाथ करेंगे शुभा ही यशोवर्धन खानदान के यश कीर्ति कि पताका को लहरायेगी अभी साक्षात काल भी उसका कुछ भी बाल बांका नही कर सकता है,,,,

अतः आप लोग निश्चित होकर विश्राम करे मैं भी कुछ देर विश्राम के बाद चला जाऊंगा ।मंगलम रेंगते रेंगते शुभा के पलंग के करीब तो पहुंच गया लेकिन उसके दाहिने हाथ कि कोहनी बुरी तरह से जमीन से घिस कर लहूलुहान हो चुकी थी मंगलम बड़ी मुश्किल से भोजन का एक नेवाला बांए हाथ से लेकर शुभा के अधरों तक ले जाते बोला शुभा तुमने आज दिन भर कुछ नही खाया है कम से कम यह प्रसाद तो खा लो शुभा तो रात और पूरे दिन और प्रत्यक्ष विशधर के रूप में अपना काल देख रही थी गला उसका अवरुद्ध था,,,,

भयाक्रांत काँप रही थी मंगलम बोला शुभा अब क्यो डरती हो हम जिएंगे तो साथ मरेंगे तो साथ मैं आ गया हूँ शुभा की स्थिति समझते हुए किसी तरह एक नेवाला मंगलम ने शुभा के मुंह दे दिया शुभा उठकर उगलने की हिम्मत खो चुकी थी और अपने ऊपर उगल नही सकती थी अतः उसने प्रसाद निगलना ही बेहतर समझा इस बीच विशधर का फुंकार तांडव के रूप में जारी था ऐसा लगता था कि कभी वह अपने विष से शुभा का अंत कर सकता है,,,,,

शुभा ने नेवाला निगलते हुये कहा मंगलम तुम चले जाओ तुम्हे बहुत शुभा मिल जाएगी किस बात की कमी है तुम्हारे पास मेरी जैसी बहुत सी लड़कियां तुम्हारे पीछे मरती है तुम्हे पाने का ख्याल रखती है इतना सुनते ही मंगलम को जैसे जख्मी दाहिने हाथ जिससे खून का रिसाव हो रहा था क्या खून बह रहा था बाए हाथ का भोजन शुभा के विस्तर पर रखते हुए एकाएक विषधर एव मृत्यु की वैगैर चिंता किये हुए शुभा के पूरे शरीर एक प्रयास में तेजी से चादर की तरह ढक लिया ।संत महात्मा ने यशोवर्धन और सुलोचना को बुलाया रात्रि के तीन बजे रहे थे बोले ब्रह्म बेला आने वाली है,,,,

उससे पूर्व हमे आपकी हवेली छोड़नी होगी और लाख कोशिश निवेदन अनुरोध विनय प्रार्थना के बाद भी संत नही रुके सिर्फ इनता ही बोले हम तो ईश्वर कि प्रेरणा से ही कही जाते है कही मेरे आपके यहाँ आने का उद्देश्य पूरा हुआ अब मेरे लिये यहाँ रुकना संम्भवः नही है और ना ही मैं आप लोंगो का भोजन के उपरांत कुछ भी स्वीकार कर सकता हूँ और संत ने कहा मैं नरोत्तम नाम से सन्तो के बीच जाना जाता हूँ मेरे जाने के बाद मुझे आप लोग कभी भी खोजने की कोशिश मत करिएगा हम सामान्यतः कभी भी गांव शहरों में नही जाते जब तक ईश्वर का विधान ना बने और संत उठे और हवेली से बाहर निकले और चले गए यशोवर्धन एव सुलोचना तब तक उन्हें देखते रहे जब तक आंखों से ओझल नही हो गए।

मंगलम ने ज्यो ही शुभा को चादर की तरह ढक लिया त्यों ही विशधर का फुंकार बन्द हो गया और वह लटकने के की मुद्रा से बढेर पर सिमट कर फन निकाले शुभा और मंगलम को देखने लगा अब शुभा को कुछ निश्चिन्तता हुई मंगलम चौधरीं के दाहिने हाथ से बहते रक्त को शुभा ने अपने साड़ी का पल्लू फाड़ कर बांध और दोनों कुछ देर बाते करते रहे पता नही कब दोनों में आत्मिय बोध का शारीशरीक सम्पर्क हुआ कैसे हुआ पता नही चला जब दोनों प्रेम मिलन के उत्कर्ष पर थे,,,,

तभी विषधर कहां चला गया पता ही नही चला शुभा और मंगलम दिन चढ़ने तक सोते रहे जैसे कि दोनों को जीवन में सबसे बड़ी सम्पत्ति आए शुख शांति मिल गयी हो शुभा उठी और अपनी आदतों के अनुसार वह माँ सुलोचना एव पिता यशोवर्धन का आशीर्वाद लिया बेटी को जीवित और प्रसन्न देखकर यशोवर्धन और सुलोचना बहुत प्रसन्न हुए मंगलम भी कुछ देर बाद उठा अब परिवार मे जैसे खुशियाँ लौट आयी हो ।

जारी है

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1 Comments

Gunjan Kamal

16-Aug-2023 12:11 PM

शानदार भाग

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